मानवता संरक्षण का अस्त्र : अहिंसा (भाग # १) | The War of Humanitarian Conservation: Non-violence (Part # 1)
मानवता संरक्षण का अस्त्र : अहिंसा (भाग # १ ) [The War of Humanitarian Conservation: Non-violence (Part # 1))
भगवान महावीर, बुद्ध और गाँधी की इस धरती पर शायद ही कोई शिक्षित व्यक्ति ऐसा हो, जो अहिंसा शब्द से परिचित न हो । हजारों वर्षों से अहिंसा हमारी संस्कृति का एक आवश्यक अंग है । आज से करीब अढ़ाई हजार वर्ष पहले भगवान महावीर ने सबसे पहले अहिंसा की भली प्रकार व्याख्या की और इसको जीवन में उतारने पर बल दिया । उनके बाद तो सम्राट अशोक से लेकर महात्मा गाँधी तक अनेकानेक महापुरुषों ने अहिंसा को जीवन का आवश्यक अंग बतलाया और इसे अपनाने पर ज़ोर दिया ।
कुछ लोग कहते है – आधुनिक यांत्रिक युग में अहिंसा का पालन सम्भव नहीं । उनका कहना है, अहिंसा का अर्थ होगा तमाम आधुनिक यंत्रों को नकार देना, जो कि सम्भव नहीं । किन्तु उनका ऐसा सोचना भ्रामक है । अहिंसा वैज्ञानिक उन्नति के विरुद्ध नहीं है । वस्तुस्थिति यह है कि इस यांत्रिक युग में ही मनुष्य को अहिंसा की सबसे अधिक आवश्यकता है । आज जो आपाधापी, लूटमार और अराजकता संसार में व्याप्त है इसका कारण अहिंसा का अभाव ही है । यदि आज का मनुष्य अहिंसा की महत्ता नहीं समझता तो परमाणु अस्त्रों से लैस यह संसार बहुत जल्दी ही नष्ट हो जाएगा ।
सबसे पहले हम यह समझे कि अहिंसा है क्या ? विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से अहिंसा की परिभाषा दी है पर संक्षेप में मन, वचन और कर्म द्वारा किसी को कष्ट न पहुंचाना ही अहिंसा है । यदि हम मन में किसी का अहित न सोचे, वाणी द्वारा किसी को दुर्वचन न कहें और कोई ऐसा कर्म न करें जिससे किसी को किसी प्रकार का कष्ट हो, तो यह अहिंसा होगी । अहिंसा पालन सरल तो नहीं है किन्तु महान आदर्श सामने रखें तो कठिन नहीं है, बल्कि आत्मा की सच्ची शांति का अनुभव हमें अहिंसा से ही हो सकता है । असल में जीव मात्र के प्रति कल्याण की भावना ही अहिंसा है । व्यवहार में इसका अर्थ यह भी नहीं है कि कोई हमें कष्ट पहुचाए और हम उसका सिर्फ इसलिए प्रतिकार न करें कि इससे उसे मानसिक या शारीरिक कष्ट पहुचेगा । इस संदर्भ में गांधीजी के जीवन का एक प्रसंग बतलाना पर्याप्त होगा । एक बार आश्रम की कुछ लड़कियां हांफती-कांपती-भागती-सी आई । गांधीजी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने बतलाया, “बापू ! कुछ उद्दण्ड युवक हमें रास्ते में मिल गए । हमने भागकर बड़ी मुश्किल से उनसे पीछा छुड़ाया है ।”
लड़कियों की कायरता पर गांधीजी को बड़ा गुस्सा आया । उन्होंने डांटते हुए कहा, “तुमने उन उद्दण्ड लड़को को थप्पड़ क्यों नहीं लगा दिए ? थप्पड़ खाकर उनकी सारी उद्दण्डता खत्म हो जाती ।” लड़कियां हैरान होती हुई बोली, “युवकों को थप्पड़ लगाना क्या हिंसा नहीं होती ?” इस पर गांधीजी मुस्कराते हुए बोले, “इसका मतलब है, तुम लोग अभी अहिंसा जानती नहीं हो । सबसे पहले तुम्हें थप्पड़ मारकर अहिंसा का अर्थ समझना होगा ।”
महावीर और गांधीजी की अहिंसा आदर्श अहिंसा है । आदर्श को प्राप्त करना बहुत कठिन तो होगा ही । पर इसका तात्पर्य यह नहीं है कि हम उस दिशा में प्रयत्न ही न करें । आदर्श अहिंसा की प्राप्ति तो परमानन्द की प्राप्ति है, स्वर्ग की प्राप्ति है । हम जितना प्रयत्न करेंगे हमें उतना ही फल मिलेगा । यदि इस दुनिया को हम स्वर्ग नहीं बना सकते तो इंसानों का समाज तो बना ही सकते हैं । विश्व के प्राय: हर कोने में हिंसा का जैसा तांडव नृत्य आजकल हो रहा है, उससे तो लगता है यह संसार शीघ्र ही नरक बन जाएगा और रसातल में पहुँच जाएगा । इसमें कोई शक नहीं कि मशीनीकरण ने हिंसा को बढ़ावा दिया है पर अहिंसा मशीनों को पूर्णतया त्याग देने के लिए नहीं कहती । गांधीजी ने कहा था – “मै यंत्रो को नकार देने के लिए कैसे कह दूँ ? जबकि मैं यह जानता हूँ कि हमारा यह शरीर भी एक यंत्र ही है । मेरा यह चरखा भी छोटा-सा यंत्र है । पर मैं तो यह कहना चाहता हूँ कि यंत्र जहाँ तक मनुष्य को लाभ पहुंचाते हैं, वहां तक तो उनका निर्माण और उपयोग ठीक है पर जहाँ ये मनुष्य को हानि पहुँचाना शुरू कर दें, वहीँ इनको नष्ट कर देना चाहिए ।”
यंत्रो ने मनुष्य को सुख-सुविधाएँ दी हैं, जिससे वह स्वार्थी हो गया है । शारीरिक परिश्रम से वह कतराता है । प्राचीनकाल में समाज में जितने भी वर्ग या वर्ण थे, यंत्रो के आभाव में वे सब पर्याप्त शारीरिक या मानसिक कष्टों को आज की अपेक्षा अधिक तीव्रता से अनुभव करते थे, जबकि आज धनी व्यक्ति किसी दरिद्र के कष्ट को उतनी तीव्रता से अनुभव नहीं कर पाता । क्योंकि उस अनुभव से वह कभी गुजरा ही नहीं । नाना प्रकार के यंत्र उसने खरीद रखे हैं जिनके द्वारा सब प्रकार के कार्य संपन्न हो जाते हैं और उसे कोई शारीरिक परिश्रम नहीं करना पड़ता । आज संसार में सिर्फ दो ही वर्ग रह गए है – धनवान और निर्धन । सामान्यतया एक वर्ग के लोगों में अपने ही वर्ग के लोगों के प्रति आत्मीयता पाई जाती है । अत: धनवान धनवान का सहारा तो बनता है किन्तु दरिद्र का नहीं । यही आज की सबसे बड़ी हिंसा है । उधर दरिद्र दरिद्र का सहारा बनने को कोशिश करता है किन्तु वह बन नहीं पाता । जो स्वयं ही बेसहारा हो, वह किसी का क्या सहारा बनेगा ? अत: दरिद्र व्यक्ति भी धनवानों की ही जी-हजूरी करने पर मजबूर होता है और उन्हीं के शोषण का शिकार होता है ।
The English language translation from the help of Google language tool as below :
There may be hardly any educated person on this earth of Lord Mahavira, Buddha and Gandhi, who is not familiar with the word of Ahimsa. Non-violence is an integral part of our culture for thousands of years. Today, about two and a half thousand years ago, Lord Mahavir first explained the non-violence and stressed the need to bring it down into life. After him, many great men from emperor Ashoka to Mahatma Gandhi called nonviolence an essential part of life and stressed on adoption.
Some say that it is not possible to follow non-violence in the modern mechanical era. They say, non-violence will mean denial of all modern equipment, which is not possible. But their thinking is misleading. Non-violence is not against scientific advancement. The situation is that in this mechanical era, man needs the most of non-violence. Today, which is rampant in the world of apathy, robbery and chaos, the absence of non-violence is due to it. If today's man does not understand the importance of non-violence, then the world equipped with nuclear weapons will be destroyed very soon.
First of all, do we understand that there is nonviolence? Scholars have defined different types of non-violence, but in a nutshell it is non-violence to not hurt anyone by mind, word or deed. If we do not think of anybody's hurt in our mind, do not say no to abusive speech and do not do any such thing, so that if somebody has any kind of suffering, then it will be non-violence. Non-violence is not easy, but it is not difficult to keep the great ideal, but the true peace of the soul can only be experienced by non-violence. Actually the feeling of welfare towards the organism is non-violence. It does not even mean that someone should hurt us in behavior and we should not resist it simply because it will lead to mental or physical suffering. In this context, it would be enough to make a reference to Gandhiji's life. Once a few girls of the ashram were gasps-kapati-basti-ci. When Gandhiji asked the reason, he said, "Bapu! Some manipulated youth found us on the way. We have escaped and chased them with great difficulty. "
Gandhiji got bigger anger on the cowardice of girls. He scolded, "Why did not you slap those upright boys? The girls were surprised and said, "Is not there a violence to slap young people?" Gandhiji smiled, "This means that you do not know nonviolence yet. You must first slap and understand the meaning of non-violence. "
Mahavira and Gandhiji's non-violence are ideal non-violence. It will be very difficult to achieve the ideal. But this does not mean that we should not try in that direction. The realization of ideal nonviolence is the realization of Paramand, the realization of heaven. We will get the same results as we try. If we can not make this world a paradise, then we can create a society of human beings. Since the violence of violence in every corner of the world is happening nowadays, it seems that this world will soon become hell and reach the abyss. There is no doubt that mechanization has promoted violence but non-violence does not say to give up the machine completely. Gandhiji had said - "How can I say to deny machinery? While I know that our body is also an instrument. My charkha is also a small instrument. But I want to say that as far as the instrument provides benefits to man, then they are manufactured and used properly, but where they start to harm the person, they should destroy them. "
Devices have given pleasure to man, which has become selfish. He is a victim of physical labor. In the ancient times, in the absence of any class or character in the society, they used to experience all the physical or mental sufferings more intensely than today, whereas today a wealthy person can not experience the suffering of a poor person as much as possible. Because that experience has never passed. Many types of instruments have been purchased by them, by which all kinds of tasks are completed and they do not have any physical exertion. Today, there are only two classes in the world - rich and poor. In general, people belonging to one class are found to be affluent towards their own people. So wealthy rich man is made to support but not poor. That's the biggest violence today. On the other hand, the poor try to be a support to the poor, but he can not. What will be the support of anyone who is self-destructive? Therefore, poor people are also forced to pay the poor people and they are victims of exploitation.
Thanks mehta ji mene apka article pahli bar pada aur apka bhakt (fan) ho gya apka bahut bahut aabhar ishwar apko aage badaye.
Mehta sahab kripya up 👆 vote karne main kanjusi na dikhayen. JAY HIND VANDE MATRAM
Bhaiya ji zindgi ek jung hai jab tak ahinsa sang hai?
अहिंसा हमेशा हमें मानवता के प्रति सजग करती है. डर, लालसा, नफरत और भेदभाव के चक्र को तोड़ती है. अहिंसा ’स्व’ पर ’राज’ यानि पूर्ण नियंत्रण का रास्ता है. ये ऐसी अवस्था है जिसमें शोषित को शोषक से और शोषक को शोषण की आदत से छुटकारा दिलाती है. शोषित और शोषक, दोनों को ही दमन का चक्रव्यूह तोड़ना सिखाती है.
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I saw the post less bad that you put in English to know much more of this, excellent structure, I hope to see Esperanto one day in steemit the universal language. My support and my respects with my vote.
@mehta
अहिंसा उच्चतम नैतिकता की ओर ले जाती है, जो सभी विकास का लक्ष्य है। जब तक हम सभी अन्य जीवित प्राणियों को नुकसान पहुंचाते हैं , हम अभी भी जंगली मनुष्य हैं
Wars can never solve the problems of people but make them worse.
Lets work together for peace between Indian and Pakistan. I followed and upvoted you, Please do the same in return.
अहिंसा के मार्ग पर चलकर भारत ने विश्व में एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
गाधीजी ओर महावीर आहिसा एक जैसी ही है। अहिसा का अर्थ कायरता हरगिज़ नही है।
भाई हमारे दुनिया से हिंसा कभीभी खत्म नही हो सकती ऐसा सबका कहना है
पर मेरा मानना है कि हिंसा को खत्म करने के लिए अहिंसा का सहारा लेना
चाहिए।