कालीदासकाे कथा

in #kalidashstory2 years ago

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कालीदास एक प्राचीन संस्कृत लेखक थे जिनकी रचनाएँ भारतीय साहित्य की महत्वपूर्ण कृतियों में से एक हैं। उनकी कृति में से एक प्रसिद्ध कथा "अभिज्ञानशाकुन्तलम्" है, जो भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण कृति है। यह एक पुराणिक कथा है जो हिंदू धर्म और दर्शन की मान्यताओं और आदर्शों पर आधारित है।
कथा निम्नलिखित है:
शाकुन्तला एक राजकुमारी थी जो ऋषि काण्व की आश्रम में बड़ी हुई। एक दिन राजा दुष्यन्त वन में हिरण की शिकार करते समय वहां पहुँचा और वहां शाकुन्तला को देखकर उसका मन उसकी सुंदरता पर लटक गया। दुष्यन्त और शाकुन्तला में प्यार हो गया और उनकी विवाह संसार को प्रसन्न कर दिया।
दुष्यन्त शाकुन्तला का अनुराग ढालकर अपने राज्य में वापस चला गया, वादा करते हुए कि वह बाद में उन्हें वापस लेगा। लेकिन वह बाद में भूल गया और शाकुन्तला उसके सामर्थ्य पर आपत्ति करने गई, जिससे वह उसे भगवान धर्मराज के आश्रय में छोड़ दिया। धर्मराज ने शाकुन्तला की सहायता की और उसे एक अद्भुत घर में ले गए, जहां वह अपने संतान भरपूर स्नेह और देखभाल के साथ गुजारे।
समय बीतता रहा और शाकुन्तला का बच्चा बड़ा हुआ। एक दिन दुष्यन्त वास्तविकता में याद आ गया कि वह शाकुन्तला के साथ विवाहित है और उसके पास एक संतान है। वह शाकुन्तला की तलाश में निकला और धर्मराज के आश्रय में पहुँचा, लेकिन धर्मराज ने उसे नहीं पहचाना, क्योंकि उसकी याद उसकी पत्नी और संतान से मिट चुकी थी।
शाकुन्तला ने चिट्ठी में अपनी पहचान बताने की कोशिश की लेकिन धर्मराज ने उसकी चिट्ठी को नजरअंदाज कर दिया। निराश होकर शाकुन्तला ने धर्मराज के समक्ष गणेश मंदिर में जाकर अपनी संतान को प्रस्तुत कर दिया और वहां से चली गई।
धर्मराज की पत्नी और राज्यवासियों ने बाद में धर्मराज को सच्चाई बताई और उसने शाकुन्तला की पहचान की। उसने तुरंत शाकुन्तला के पीछकर गया और उसे धर्मपुरी नामक गांव तक पहुंचाया, जहां शाकुन्तला ने अपनी मातृगृह और धर्मराज के साथ बिताए हर पल की यादें ताजगी से याद कर ली। धर्मराज भी अपनी गलती को स्वीकार कर शाकुन्तला से माफी मांगते रहे और उनकी प्रेमकथा का एक नया अध्याय शुरू हो गया।
कुछ समय बाद धर्मराज का राज्य विस्तार हुआ और वह शाकुन्तला और उनके संतान को धर्मपुरी में ले गया। वहां उनका जीवन खुशहाली से बितता रहा और धर्मराज का प्रेम और स्नेह उनके चरित्र को सुशोभित करता रहा। समय के साथ, धर्मराज का पुत्र महाराज भरत नाम के राज्य का राज्यपाल बन गया और उसकी शिक्षा धर्मराज ने स्वयं दी। धर्मपुरी नाम का राज्य धर्मराज ने अपने पुत्र को सौंप दिया और साथ में शाकुन्तला और उनके संतान को भी साथ ले गए। इस प्रकार कालिदास की यह कथा शाकुन्तला नाम के एक सुन्दर और प्रेम भरे रोमांटिक किस्से को आपके सामक्ष में प्रस्तुत करती है, जिसमें धर्मराज और शाकुन्तला के प्रेम की गहराई और धर्मपुरी राज्य की धर्मवृत्ति का वर्णन किया गया है। यह कथा एक प्रेम और धर्म की अनूठी कहानी है, जो कालिदास की लेखनी की महानता और कला को प्रकट करती है।
इस कथा में धर्मराज का विचारशील चरित्र दिखाया गया है, जो अपनी गलती को स्वीकार करते हैं और उसे सुधारने के लिए प्रयास करते हैं। वे शाकुन्तला के प्रेम को सम्मान देते हैं और उसके साथ धर्म की पालना करते हैं। शाकुन्तला का भी विनम्र और प्रेमपूर्ण चरित्र दिखाया गया है, जो अपने पति की सेवा करती है और धर्मराज के प्रेम की प्रतीक्षा करती है।
इस कथा के माध्यम से कालिदास ने प्रेम, वफादारी, धर्म, विश्वास और संबंधों की महत्वपूर्ण परामर्श दिया है। इसके अलावा, इस कथा में प्रकृति की सुन्दरता, भारतीय संस्कृति और आदर्श राजनीति का भी वर्णन किया गया है।
कालिदास की इस कथा को हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण धारणा माना जाता है और यह एक गांव की सीधी-साधी लड़की जीवनी से निकलकर संसार के विचित्र और रोमांचक किस्से-कहानियों में बदलती है। इस कथा में प्रेम की गहराई, धर्म की महत्वपूर्णता, वफादारी की प्रशंसा और संबंधों की महत्वता को बहुत सराहा गया है।
कथा की कुछ महत्वपूर्ण पटकथा इस प्रकार हैं:
धर्मपुरी राज्य के राजा धर्मराज एक सत्यनिष्ठ और न्यायप्रिय राजा हैं, जिन्हें धर्म की पालना करने में गर्व है। एक दिन वे जंगल में घूमते हुए शाकुन्तला से मिलते हैं और वे दोनों एक-दूसरे में प्रेम में पड़ जाते हैं। धर्मराज शाकुन्तला के प्रेम को स्वीकार करते हैं और उसे अपनी रानी बना लेते हैं। धर्मराज की वफादारी और प्रेमपूर्ण चरित्र इस कथा में प्रशंसित की गई है।
धर्मराज धर्मपुरी राज्य की राजनीति में भी महानता दिखाते हैं। उनकी विचारशीलता, न्यायप्रियता और सामर्थ्य को विविध पटकथा में दिखाया गया है। उन्होंने शाकुन्तला को धर्मपुरी राज्य की रानी बनाया, लेकिन उनकी विचारशीलता के कुछ दुश्मन धर्मराज के पास झूठी शिकायत करते हैं और उनकी राजनीतिक साजिश करते हैं। इसके परिणामस्वरूप धर्मराज को शाकुन्तला को भूल जाना पड़ता है और वह शापित हो जाती है कि वो जब तक धर्मराज को अपनी पहचान न बताए, तब तक वह उससे मिलने का अधिकार नहीं रखेगी। धर्मराज को यह सब भूलना पड़ता है और वह शापित शाकुन्तला का पुत्र भरत को भी नहीं पहचान पाते हैं।
शाकुन्तला धर्मपुरी राज्य को छोड़ जाती है और अपनी गर्भवती स्थिति में वन में एक आश्रम में रहती है। वहां उसका पुत्र भरत पैदा होता है जो एक बहुत ही बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ बच्चा होता है। उसकी प्रतिभा, शक्ति और बल की कहानी धीरे-धीरे फैलती है और उसे अपने वंश के राजा के रूप में स्थान मिलता है।
धर्मराज को बाद में अपनी भूल का अहसास होता है और वह शाकुन्तला और उसके पुत्र भरत को ढूंढता है। वह अनेक कठिनाइयों के बाद उनसे मिलता है और उनकी क्षमाकरता है। धर्मराज और शाकुन्तला का पुराना प्यार फिर से जाग्रत होता है और वे एक-दूसरे को मिलते हैं। धर्मराज भरत को अपना बेटा मानता है और उसे धर्मपुरी राज्य का राजा बना देता है।
कुछ समय बाद, धर्मराज के दुश्मन नेमि और दुर्गम किसी समय धर्मपुरी राज्य का आक्रमण करते हैं और भरत को बहुत कठिन परीक्षा में डालते हैं। भरत अपनी बुद्धिमता और धर्मनिष्ठा से इन परीक्षाओं का सामना करता है और उन्हें पराजित कर देता है। धर्मराज और शाकुन्तला भरत की बलिदानी प्रकृति और धर्मपुरी राज्य की रक्षा के लिए गर्व करते हैं और उसे राज्य के राजा के रूप में स्थान देते हैं।
इसके बाद, कुछ और घटनाएँ होती हैं जैसे कि धर्मराज का सत्ता पर अधिकारी नेमि और दुर्गम की पुनर्विजय होती है, फिर धर्मराज की सत्ता वापस लौटती है और धर्मराज शाकुन्तला को अपनी रानी बना लेता है। शाकुन्तला और धर्मराज की खुशियों का वर्णन करती है और कहती है कि उनकी राज्य की सुख-शांति की स्थापना होती है।
कथा अपने परिणाम में समाप्त होती है जब शाकुन्तला और धर्मराज के बीच की प्रेम कहानी सफलतापूर्वक समाप्त होती है और धर्मपुरी राज्य में धर्मराज और शाकुन्तला की शुभ राज्य कार्यकाल शुरू होता है।
धर्मराजका कालीदास द्वारा लिखी गई एक गाथा है जो प्रेम, धर्म, धोखे, परीक्षा, संघर्ष, और न्याय के विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों को समावेश करती है। यह एक रोमांटिक और धार्मिक कहानी है जो व्यक्तिगत और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है और धर्म, न्याय, और प्रेम की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देती है।
यह कहानी आपको एक अद्भुत और आकर्षक विश्व में ले जाती है जहां प्रेम और धर्म की शक्ति और महत्व को दिखाती है और धर्मराज और शाकुन्तला के रिश्ते की मिठास और संघर्ष को प्रस्तुत करती है। यह कथा एक अद्भुत साहित्यिक उपन्यास है जो हमारी संस्कृति और धर्म के महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहरा प्रभवार करता है। इस कथा में कालीदास ने शानदार भव्य भूमिका निभाई है और इस गाथा को एक युगल प्रेम कहानी के रूप में प्रस्तुत किया है।
धर्मराज के विचार और व्यवहार की उच्चता और नीचता, शाकुन्तला की परीक्षा और उसके साथ हुए धोखे, उनके रिश्ते में उत्साह और परीक्षमान स्वाधीनता, इन सभी मुद्दों को एक संतुलित ढंग से प्रस्तुत करती है।
इस कथा में विभिन्न पात्रों की विकास और उनकी प्रेम की अभिव्यक्ति को दिखाया गया है। शाकुन्तला की निराशा, धर्मराज की वैषम्य और फिर उनकी प्रेम और शक्तिशाली राजनीतिक रूप से संघर्ष दिखाते हैं। इस कथा में भारतीय संस्कृति, धर्म, नैतिकता, और वैचारिक विचार विविधता और गहराई के साथ परिचित कराती है।
धर्मराज और शाकुन्तला के प्रेम का वर्णन इस कथा की मुख्य धारा है, जो रोमांटिक और आध्यात्मिक रूप से संबंधित है। इसके अलावा, धर्मराज के धर्मपुरी राज्य की स्थापना, उसके नैतिक तत्वों की प्रकृति, उसकी आत्मविश्वास, और उसकी धर्मराज्य की प्राथमिकता भी इस कथा में दिखाई देती है।
कथा ने शाकुन्तला की स्वयंभू प्रकृति, उसकी सहानुभूति, और उसकी विचारशीलता को भी बहुत महत्व दिया है। उसकी मातृत्व भावना, उसकी प्रेम और शर्मिलापन इस कथा को एक गहरी भावनात्मक आनंद प्रदान करती है।
इस कथा में और भी कई रंगबिरंगी पात्र जैसे कि मनका, गौतम, दुष्यन्त, वसंता, और दूत, जो इस कथा की कहानी को मजबूत बनाते हैं।
धर्मराज और शाकुन्तला की प्रेम कहानी, धार्मिक तत्वों की गहरी प्रतिनिधित्व करती है और भारतीय संस्कृति की गौरवशाली विरासत को प्रस्तुत करती है।
इस कथा में भव्य वस्त्र, शोभायात्रा, और भव्य संसार का वर्णन भी किया गया है, जो इस कथा की स्थापना को और भी मनोहर बनाता है।