पर्यावरण के विध्वंस से उजड़ती ये दुनिया -2 [खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती, प्रविष्टि – 18]
आइए, पहले पशुओं का “उत्पादन” करने वाले कारखानों के हमारे पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में कुछ तथ्यों को देखें:
• कई प्रजातियों का विलुप्त होना, जल प्रदूषण, मृत-महासागर-क्षेत्रों का बनना और कई प्राणियों की रहने योग्य बस्तियों का उजड़ जाने का प्रमुख कारण है पशुओं की बड़े पैमाने पर की जाने वाली खेती।
• पशुओं की खेती से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विश्व में सभी प्रकार के परिवहन से होने वाले उत्सर्जन से भी कहीं अधिक है।
• पशुओ की खेती प्रतिवर्ष 32 अरब टन कार्बन-डाईऑक्साईड समकक्ष यानि कि विश्व-भर में होने वाली 51% ग्रीनहाउस गैसों के लिए उत्तरदायी है।
• कार्बन-डाईऑक्साईड का उत्सर्जन पशुओं की खेती से होने वाले उत्सर्जन का एक छोटा-सा हिस्सा है। सबसे अधिक उत्सर्जित होती है इससे भी अधिक दो अन्य खतरनाक ग्रीनहाउस गैसें : मिथेन और नाइट्रस-ऑक्साईड।
• ये विश्व की 65% नाइट्रस-ऑक्साईड के उत्सर्जन की ज़िम्मेदार है। नाइट्रस-ऑक्साईड एक ऐसी ग्रीनहाउस गैस है जो कार्बन-डाईऑक्साईड से 296 गुना अधिक विनाशक है और ये वायुमंडल में डेढ़ सौ वर्षों तक बनी रहती है और ग्लोबल-वार्मिंग का प्रमुख कारक है।
• पशुओं की खेती से पर्यावरण में होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कुल खेती से होने वाले उत्सर्जन का 80% है।
• मवेशियों का पालन दुनिया में सबसे अधिक मिथेन के उत्सर्जन का कारण है। इसमें विश्व में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है (22 करोड़ टन कार्बन-डाईऑक्साईड समकक्ष के साथ)।
• मिथेन कार्बन-डाईऑक्साईड से 25 से 100 गुना अधिक विनाशक है। इसका GWP (ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल) कार्बन-डाईऑक्साईड से 86 गुना अधिक है।
• केवल गायें ही डेढ़ सौ अरब गैलन मिथेन गैस का उत्सर्जन कर देती हैं। (एक गाय प्रतिदिन 66 से 132 गैलन मिथेन उत्पन्न करती है) ।
• पशुओं की खेती से निस्सारित होने वाला उत्सर्जन सन् 2050 तक 80% और बढ़ने के अनुमान हैं।
• 1,300 से 3,000 खरब लिटर तक पानी का इस्तेमाल पशुओं की खेती के लिए प्रतिवर्ष होता है।
• पशुओं के भोजन उत्पादन हेतु अमरीका का आधे से अधिक (56%) पानी इस्तेमाल हो जाता है।
• एक हेमबर्गर (शुकर-माँस से बना बर्गर) के उत्पादन में दो हज़ार लिटर पानी की खपत होती है।
• एक किलोग्राम गौमाँस के उत्पादन के लिए औसतन 21,225 लिटर पानी की खपत होती है। (कुछ जगह इसका अनुमान 68,000 लिटर प्रति किलोग्राम तक है!)
• एक लिटर दूध उत्पादन करने के लिए एक हज़ार लिटर पानी खर्च हो जाता है।
• एक किलो माँस उत्पादन के लिए 20 किलो तक अनाज की आवश्यकता पड़ती है।
• एक किलो पनीर के उत्पादन में 7,640 लिटर पानी की खपत होती है।
• एक किलो अण्डे के उत्पादन में 4,050 लिटर पानी की ज़रुरत होती है।
• पूरी दुनिया के मीठे-पानी के उपभोग का 20% से 33% तक पशुओं की खेती हेतु इस्तेमाल हो जाता है।
• मवेशियों और उनके भोजन के लिए दुनिया की 45% (लगभग आधी) ज़मीन का इस्तेमाल होता है।
• तीन हज़ार डेयरी गायों का एक फार्म उतना ही कचरा पैदा करता है जितना कि पाँच लाख की आबादी का एक पूरा शहर।
• भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय की 2009 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार पशुओं की खेती से पैदा होने वाले प्रति-उत्पाद, यानि कि जानवरों के अवशिष्ट, और जानवरों के भोजन के लिए उगाई जाने वाली फसलों पर इस्तेमाल किये जा रहे कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के रिसाव, भारत की नदियों, नहरों और भूमिगत जल में मिल रहे हैं।
• दुनियाभर में तीन-चौथाई मछलियों का “उत्पादन” नहीं होता वरन अति-दोहन द्वारा शोषण होता है। ये जलाशयों में जैव-विविधता बनाये रखने के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
• आज जिस दर पर मछलियों का दोहन हो रहा है, यदि वह जारी रहा तो 2048 ई. तक दुनिया के सारे महासागरों में विद्यमान सारी की सारी मछलियाँ निकाली जा चुकी होगी - [नेशनल जियोग्राफिक]।
• दस करोड़ टन मछलियाँ (कुल मिलाकर करीब 27 खरब जीव) हम हर साल महासागरों से बाहर खींच लेते हैं।
• इनमे से 40% तक मछलियों को हम यूँ ही फैंक देते हैं।
• साल भर में लगभग साढ़े छः लाख डोल्फिन, व्हेल और सील मछलियाँ मछली पकड़ने वाले जहाँजों और नावों से दुर्घटनाग्रस्त हो मर जाती है। 4 से 5 करोड़ शार्क मछलियाँ मछली-पकड़ने वाले जालों की चपेट में आकर अपना दम तोड़ देती है।
• प्रति एक किलो मछली पकड़ने पर 5 किलो अनावश्यक समुद्री जीव पकड़े जाते हैं और मर जाते हैं जिन्हें प्रति-उत्पादित कचरा समझ फेंका जाता है।
• अमेज़न के 91% जंगलों की तबाही का कारण पशुओं की खेती ही है।
• प्रति सैकंड एक से दो एकड़ वनों का विनाश हो रहा है।
• वनों के विनाश के परिणामस्वरूप प्रतिदिन वनस्पतियों, जानवरों और कीड़ों की 137 प्रजातियाँ विलुप्त होती जा रही है।
• अमरीका में इंसानों के अवशिष्ट से 130 गुना अधिक मवेशियों का अनुपयोगी अवशिष्ट पैदा होता है (1.4 अरब टन प्रतिवर्ष केवल माँस-उत्पादित करने वाले कारखानों से) ।
• पूरी पृथ्वी का एक-तिहाई हिस्सा रेगिस्तान में तब्दील हो चुका है। पशुओं की खेती इसका प्रमुख कारण है। (UN launches international year of deserts and desertification)
• हमारे भोजन के लिए इस दुनिया में प्रति घंटे 60 लाख जीवों की हत्या की जाती है। साल-भर में 70 अरब जीवों की इंसान “खेती” करता है।
• भूखमरी और कुपोषण के शिकार 82% बच्चे ऐसे विकासशील देशों में रहते हैं, जहाँ भोजन का उत्पादन पशुओं के लिए किया जाता है और पशुओं को विकसित पश्चिमी देशों को खिलाया जाता है।
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खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती में आगे पढ़ें, इसी श्रंखला का शेषांश अगली पोस्ट में।
धन्यवाद!
सस्नेह,
आशुतोष निरवद्याचारी