दूध की रहस्यमय बत्तीसी [खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती, प्रविष्टि – 16]steemCreated with Sketch.

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दूध की रहस्यमय बत्तीसी


(वे गोपनीय पहलू जो कोई चिकित्सक आपको नहीं बताता)

“समस्त आबादी और बर्बादी की जनक है, मानव की ज्ञान-शून्यता।”
  1. माँ के दूध के सिवा सभी पशु-जनित दूध मानव के लिए बिलकुल अनावश्यक है।
  2. डेयरी के दूध को हमारे स्वास्थ्य-संबंन्धी कई खतरनाक बीमारियों से जोड़ा जा चुका है जैसे: कैंसर, मधुमेह, ऑटिज्म, शिजोफ्रेनिया, मल्टीपल स्क्लेरोसिस इत्यादि। मोटापा, हृदयरोग, अस्थमा, डायबिटीज़, पाचन-संबंन्धी परेशानियाँ, एंटीबायोटिक्स के प्रति निष्क्रियता, व्यवहार-संबंन्धी समस्याएँ और डाई-ओक्सिन, कीटनाशक, खर-पतवार नाशक आदि दवाइयों का हमारे वसा के रूप में इकठ्ठा हो जाना जैसी समस्याएँ भी कम खतरनाक नहीं हैं।
  3. जो देश जितने ज्यादा डेयरी-उत्पादों का उपभोग करता है, वहाँ ओस्टीयोपोरोसिस (हड्डियों की कमज़ोरी) की दर भी उतनी ही अधिक पायी जाती है।
  4. दुनिया के तीन-चौथाई लोग दूध में पाये जाने वाले लेक्टोज़ के प्रति संवेदनशील हैं और उसे ठीक से पचा नहीं पाते।
  5. इस धरती पर किसी भी प्रजाति का कोई भी प्राणी अपनी वयस्क उम्र में किसी भी दूध का सेवन नहीं करता है।
  6. कुदरती रूप से, किसी प्रजाति का प्राणी किसी भी अन्य प्रजाति के प्राणी का दूध नहीं पीता।
  7. इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के लगातार छः वर्षों के सर्वे-परिणामों में पाया गया कि दूध के अधिकांश नमूनों में (85% दूध में) डीडीटी और एचसीएच जैसे जहरीले कीटनाशकों के आलावा आर्सेनिक, कैडमियम और सीसे जैसी जहरीली भारी-धातुएं मौजूद हैं। सीवेज का गन्दा पानी, तेल, यूरिया और लिक्विड साबुन की मिलावट भी आम है। उद्योगपतियों के दबाव के कारण कई वर्षों तक आइसीएमआर ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया।
  8. हाल ही में ज़ारी एक अन्य सर्वे रिपोर्ट “दूध में मिलावट पर राष्ट्रीय सर्वे, 2011” जो कि स्वंय एफ.एस.एस.ए.आई. ने किया था, बताती है कि हमारे देश का 70 प्रतिशत दूध मिलावटी है। इनमे डिटर्जेंट, यूरिया, स्टार्च, ग्लूकोज़ ,फोर्मलीन आदि हानिकारक तत्व मिलाये गए थे। उनका एस.एन.एफ़. बहुत कम था और उनमें मलाई-उतारे हुए दूध का पाउडर मिलाया गया था।
  9. इसके अलावा दूध में गाय को खिलाये जाने वाले एंटीबायोटिक्स और होरमोंस भी पाए जाते हैं। स्वचालित मशीनों से निकाले गए दूध से गाय के थनों पर हुए घावों में होने वाले पस, खून, कफ और अनेक बेक्टेरिया भी दूध में मिल जाते हैं। अलग-अलग संस्थाओं ने पस की दूध में स्वीकृत मात्राओं के अलग-अलग मानक तय कर रखें हैं। एफडीए एक लिटर दूध में 75 करोड़ पस कोशिकाओं को वैध मानता है। जबकि अन्तराष्ट्रीय मानक 40 करोड़ प्रति लिटर से कम का है। एक लिटर दूध में 40 करोड़ पस कोशिकाओं का होना भी इस बात का संकेत देती है कि जिस फार्म से दूध लिया जा रहा है वहाँ एक-तिहाई से अधिक गाय मस्टैतिस (थनों के संक्रमण की एक बीमारी) के रोग से पीड़ित हैं!
  10. प्रोटीन और कैल्सियम की खान कहें जाने वाला दूध असल में हमारे शरीर से कैल्सियम कम कर देता है। विस्तृत जानकारी के लिए पिछला अध्याय देखें।
  11. किसी भी पशु-प्रोटीन या कैल्सियम की अपेक्षा पौधों और फलों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की जैविक-उपलब्धता अधिक होती है। अर्थात उन्हें हमारा शरीर आसानी से अवशोषित कर लेता है।
  12. पिछले कुछ वर्षों के अनेक वैज्ञानिक अध्ययन स्पष्ट बताते हैं कि दूध और डेयरी-उत्पाद हड्डियों को मज़बूत करने के बजाय फ्रेक्चर का खतरा बढ़ा देते हैं।
  13. दूध एक अम्लीय पशु-प्रोटीन है। इसका PRAL (गुर्दे में अम्ल का संभाव्य लोड) सकारात्मक है। अतः इस अम्ल से गुर्दे आदि महत्वपूर्ण अंगो पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार से बचाने के लिए शरीर में एक आपात-स्थिति घोषित हो जाती है और उस अम्ल को उदासीन करने के लिए हड्डियों आदि में स्थित फोस्फेट का उपयोग करने के लिए कैल्सियम को मुक्त करना पड़ जाता है। इस प्रकार शरीर में पूर्व में विद्यमान कैल्सियम भी मूत्र द्वार से निष्कासित हो जाता है।
  14. आज उपलब्ध दूध एक प्रसंस्कृत उत्पाद है। पाश्चर्यकृत और होमोजिनैज्ड दूध का रासायनिक संगठन अप्राकृतिक हो जाता है।
  15. सभी प्रकार के गाय के दूध में 59 तरह के सक्रिय होरमोंस, कई प्रकार के एलर्जन्स, वसा और कोलेस्ट्रोल होता है, 53 तरह के शक्तिशाली एंटीबायोटिक्स, खून, पस, मल, बेक्टेरिया, वाइरस आदि हो सकते हैं।
  16. मानव द्वारा गाय को दिए rBVH जैसे कृत्रिम होरमोंस हमारे रक्त में IGF-1 (इंसुलीन ग्रोथ फेक्टर-1) को बढ़ा देते हैं जो कई प्रकार के कैंसरों का मुख्य संभावित कारण है (विशेषकर स्तन, प्रोस्टेट और कोलोन कैंसर का) ।
  17. अधिक दूध पीने से मुंहासे हो जाते हैं। दूध के सेवन से कब्ज और कानों का संक्रमण होना भी बताया जाता है।
  18. प्रायोगिक पशु-अध्ययनों के अनुसार दूध का एक प्रमुख प्रोटीन – कैसीन कैंसर रोग का कारक है।
  19. डेयरी-प्रोटीन कोलेस्ट्रोल के स्तर को बढ़ाने में भी उत्तरदायी है।
  20. अधिक डेयरी का उपभोग करने वाले देशों में मल्टीपल-स्क्लेरोसिस की दर भी अधिक पायी जाती है।
  21. गाय के दूध में उपलब्ध प्रोटीन मोलीकुलर-मिमिक्री की प्रक्रिया के द्वारा टाइप-1 डायबिटीज़ (मधुमेह) रोग का खतरा भी बढ़ा देता है।
  22. अधिक डेयरी का उपभोग प्रोस्टेट और ओवरियन कैंसर का खतरा भी अधिक बढ़ा देता है।
  23. दूध में संभावित प्रिओंस भी हो सकते हैं जो एक वाइरस के रूप में 5 से 30 साल के अन्तराल में कभी भी सक्रिय हो सकते हैं और मेड-काउ रोग में परिणत हो जाते हैं।
  24. मधुमेह का मुख्य कारण दूध में उपलब्ध प्रोटीन लेक्टलब्युमिन है। और शिशुओं को गाय का दूध देने से मना करने के पीछे यह एक मुख्य कारण है।
  25. जोह्न’स बीमारी से ग्रसित गाय से निकले बेक्टेरिया से क्रोह्न’स बीमारी एवं IBS जैसे रोग हो जाते हैं। यहाँ यह बात नोट करने लायक है कि यह बेक्टेरिया पाश्चर्यकरण आदि प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद भी बच जाता है।
  26. अधिकांश गायों में ल्यूकेमिया (श्वेत-प्रदर) का वाइरस भी उपस्थित होता है।
  27. जो महिलाएं प्रतिदिन तीन ग्लास या इससे अधिक दूध का सेवन करती हैं, उनकी कूल्हों की हड्डी टूटने का खतरा 60 फीसदी बढ़ जाता है। [पी.सी.आर.एम., बी.एम.जे. 2014; 349 g6015]
  28. रोज तीन ग्लास या अधिक दूध का सेवन 93% मृत्यु-दर बढ़ा देता है। [पी.सी.आर.एम., बी.एम.जे. 2014; 349 g6015]
  29. प्रत्येक एक ग्लास दूध के सेवन पर सभी कारणों से होने वाली मृत्यु का खतरा 15% बढ़ जाता है। [पी.सी.आर.एम., बी.एम.जे. 2014; 349 g6015]
  30. डेयरी फार्म और बूचडखाने हमारे पर्यावरण के संरक्षण में एक बड़ी चुनौती है। इनसे अत्यधिक मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें विसर्जित होती है, मृदा-क्षरण होता है, जल संसाधनों का बहुलता से दोहन होता है, जल प्रदूषित होता है।
  31. डेयरी फार्म प्रतिवर्ष लगभग ढ़ाई करोड़ गायों और उनके बछड़ों के क़त्ल में अपना योगदान देते हैं। आज मानव द्वारा कृत्रिम तरीके से तैयार की गई गाय की नस्लें अपने बछड़ों की ज़रुरत से 12 गुना तक अधिक दूध उत्पादित करती है। 97% गाय के बछड़ों को उनके पैदा होने के महज 12 घंटों में ही उनकी माँ से अलग कर दिया जाता है। बाकियों को भी कुछ ही दिनों में अलग कर दिया जाता है।
  32. आज बाज़ार में दूध के कई स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्द्धक विकल्प उपलब्ध हैं जो कि पूर्णतः पौधों पर आधारित हैं। उदाहरणार्थ सोयाबीन के दूध में उतने ही गाय के दूध की तुलना में कम कैलोरी, कम वसा, कम चीनी और कम सोडियम होता है लेकिन उतना ही कैल्सियम और प्रोटीन होता है। चावल, सोया, बादाम-काजू, मूंगफली आदि से अनेक प्रकार के दूध बनाने के आसान विकल्प मौजूद हैं जिनसे चाय, कॉफी, मक्खन, दही, पनीर आदि समकक्ष उत्पाद तैयार किये जा सकते हैं।

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खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती में आगे पढ़ें, इसी श्रंखला का शेषांश अगली पोस्ट में।

धन्यवाद!

सस्नेह,
आशुतोष निरवद्याचारी