सुविचार 4
इस संसार में बहुत सरल है, किसी भी व्यक्ति को बुरा मान लेना, इसके लिए न हमें प्रमाण की आवश्यकता पड़ती है और न ही वास्तविकता को जानने की,इसे हम बिल्कुल ही नेत्रहीनों की भांति और बधिरों की तरह बिना विचारे स्वीकार कर लेते है।
इसके विपरीत किसी अच्छाई को स्वीकार कर पाना उतना ही कठिन होता है, उसके लिए अनेकों प्रमाण और जानकारी एकत्र कर लेने के उपरांत भी उसे सरलता से स्वीकार कर पाना हमारे लिए टेढ़ा होता है।
संसार का एक नियम है,गलत बिना किसी प्रमाण के सरलता से स्वीकार्य है, किंतु सत्य को अपना प्रमाण कसौटी पर खरा उतर कर देना पड़ता है, जो सदा से प्रताड़ित होकर, कठिनाई से स्वीकारने योग्य बन पाता है,कभी कभी सत्य को प्रमाणित होने में इतना अधिक समय लग जाता है,कि जीवन पूर्णतः तहस नहस हो जाया करता है।
वर्तमान परिवेश यही सच्चाई है, कि दूसरों को संतुष्ट और प्रसन्न वही रख पाते है, जो झूठ पर सच का चोला पहन कर सच्चे बने फिरते है, वास्तव में सच्चे लोगों से सभी संतुष्ट हो यह संभव नहीं है, क्योंकि सच कड़वा होता है, जो लगभग सभी को स्वीकार्य हो आवश्यक नहीं है।