Pes hai ek ghazal
बहुत ख़ामोश जो दरिया दिखाई देता है,
ग़मों के दौर से गुज़रा दिखाई देता है.
हवा में ,फूल में ,खुशबू में और रंगों में,
मुझे क्यूँ एक ही चेहरा दिखाई देता है
मैं जब भी शहर के नक्शे गौर करता हूँ,
क्यूँ तेरे घर का ही रस्ता दिखाई देता है.
मैं चुराता हूँ नज़र आईने से यूँ अक़सर ,
वो भी लोगों सा ही हंसता दिखाई देता है.
सुबक रहा है जो मुझमें उदास लम्हों सा,
किसी की याद का बच्चा दिखाई देता है.
सुबहो-शाम उफ़क़ पर तलाशता है किसे ,
किसी से रूह का रिश्ता दिखाई देता है.
लगी है आने तेरी खुशबू मेरी साँसों में,
मुझे तू छोड़ के जाता दिखाई देता है.