hindi ghazal
भर चुके ज़ख्मों को अब फिर न खरोचा जाये
इस नए दौर में कुछ हट के भी सोचा जाये
पुत रहीं फिर से हैं दीवारें सियाह रंगों से
हुक्मरानों से कहो इन को तो पोचा जाये
अपनी आँखों को रखो पुश्त की जानिब अपने
जो करे वार उसी वक़्त दबोचा जाये
अपने चेहरे पे चढ़ा रखें हैं चेहरे जिसने
उसके चेहरे से सभी चेहरों को नोचा जाये