पूस की रात के बाद

in #hindi2 years ago

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ठंड की उस कठिन रात के बाद

सोकर उठे हल्कू ने

जब नीलगायों द्वारा विनष्ट की गई

अपनी फ़सल को देखा

और उसके चेहरे पर जो निश्चिंतता उग आई थी

यह उसके आगे की कथा है

स्मृति बताती है

उस पूरे दिन वह बहुत ख़ुश था

सबसे पहले तो वह गाँव के पोखर पर जाकर

ख़ूब मल-मलकर नहाया था

जैसे पीढ़ियों से इकट्ठा हुई मैल को

अपने शरीर और आत्मा तक से धो डालना चाहता था

दुपहर उसने मुन्नी के हाथों

मक्के की दो रोटियाँ खाईं

उसे इस मस्त भाव से रोटियाँ चबाते

मुन्नी ने पहले कभी नहीं देखा था

वह मुँह बाए देख रही थी

हल्कू में महाजन का ख़ौफ़ बिल्कुल नहीं था

खाने के बाद हल्कू खटिया पर ढेर हो गया

पिछली रात की अधूरी नींद की ख़ुमारी

उस पार तारी थी

नींद के आख़िरी बिंदु पर भी

आने वाली रात की कड़कती ठंड की कल्पना

उसकी नींद में कंकड़ नहीं डाल पा रही थी

ख़ूब गाढ़ा सो लेने के बाद

वह उठा

चिलम पी और दीए की धीमी रोशनी में

देर तक जबरा के साथ खेलता रहा

जबरा भी थोड़ा भौचक था

कोठरी की दीवार पर

दीए की पीली रोशनी में

दो बची हुई आत्माओं की

क्रीड़ा करती परछाइयाँ

देर रात तक तैरती रहीं

लेकिन अगली सुबह गाँववालों ने

हल्कू को थोड़ा चिंतित देखा

पड़ोस में रहने वाली धनिया ने

खेत से लौटते होरी को बताया

कि मुन्नी कह रही थी—

हल्कू अब शहर जाने की सोच रहा है

उसने अपने गोबर का पता माँगा है

गोबर जब शहर गया

तब भी होरी इतना परेशान नहीं दिखा था

नया लौंडा था

पर हल्कू...

धनिया ने मुन्नी की उदासी में कहा—

बेचारी वह भी चंपा की तरह

काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती

हल्कू के जाने के बाद

वह कलकत्ते को सराप भी नहीं सकती

अब तो कितने कलकत्ते हो गए हैं

और अब तो अपने गाँव में भी

कलकत्ते के आने की ख़बर है

सवेरे चौपाल पर अलगू चौधरी

और जुम्मन मियाँ बतिया रहे थे

होरी असहाय-सा सुनता रहा

फिर थक कर धीमे क़दमों से

कोठरी से बाहर निकल गया

साँझ का सूरज डूब रहा था

धीरे-धीरे गाँव में अँधेरा उतर रहा था

किसान अपने-अपने बैलों सहित

घरों को लौट रहे थे

पूस की एक और बर्फ़ानी रात आ रही थी

और इस तरह सदी की एक महान गाथा का

धुँधला-सा अंत हो रहा था!