तकलीफ़ बहुत थी मां तेरे जिंदा रहते तू रोकती टोकती ठोकती बहुत थी तेरी रोक बंदिश लगती तो तेरी टोक ताने लगते और तेरा ठोकना तो बिल्कुल तानाशाही लगती अब तेरे न रहने पर तो तकलीफ असहनीय है न कोई कायदा है जिंदगी का न कोई वायदा है सब-कुछ बिना सिर पैर ताल लय के जिंदगी जैसे एक बिना दरवाजे का मकान बनकर रह गई!!
